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जौनसार के वीर बलिदानी सपूत वीर केसरी चंद को नमन करने उमड़ा मेले में जनसैलाब

उत्तराखंड के चकराता विधानसभा के जौनसार के वीर बलिदानी सपूत, अमर शहीद वीर केसरी चंद वो नाम जिन्होंने आजाद हिंद फौज में शामिल होकर ब्रिटिश हकूमत के दांत खट्टे कर दिए शहीद केसरी चंद के सम्मान में चकराता स्थित रामताल गार्डन में हर साल तीन मई को 'वीर केसरी चंद मेला' आयोजित किया जाता है। 03 मई 1945 को महज 24 साल की उम्र में अंग्रेजों ने उन्हें सूली पर लटका दिए था ।

जंग-ए-आजादी के वीर सिपाही शहीद वीर केसरी चंद का जन्म 01 नवंबर, 1920 को जौनसार के क्यावा गांव में हुआ था। आरंभिक शिक्षा उन्होंने विकासनगर में ग्रहण कर बाद में उन्होंने डीएवी कॉलेज में आगे की पढ़ाई की।

कहा जाता है कि केसरी चंद बचपन से ही बहुत निडर और बहादुर थे और खेलों में उनकी खासी दिलचस्पी थी। जहां उनमें एक ओर नेतृत्व का गुण था, वहीं वह एक सच्चे देशभक्त भी थे। स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी हमेशा अग्रणी भूमिका रही थी। 10 अप्रैल 1941 में वे रॉयल आर्मी सर्विस कॉर्प्स में भर्ती हो गए। यह वह वक्त था जब द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था। 29 अक्टूबर 1941 पर केसरी चंद को मलाया में चल रहे युद्ध के दौरान मोर्चे पर तैनात किया गया था। इस दौरान उन्हें जापानी सेना ने बंदी बना लिया था।

बता दें कि वीर केसरी चंद नेताजी सुभाष चंद्र बोस से बेहद प्रभावित थे। यही कारण था कि वह आजाद हिंद सेना में भी शामिल हुए थे। अंग्रेजों से भिड़ंत के दौरान पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। जिसके बाद वे दिल्ली कारागार में भेज दिए गए थे। इस दौरान ब्रिटिश राज्य के खिलाफ साजिश के आरोप में केसरी चंद को मोत की सजा दे दी गई। 03 मई 1945 को महज 24 साल की उम्र में उत्तराखंड के इस वीर सेनानी को फांसी पर लटका दिया गया था।

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